अदालत में आपराधिक मामले की सुनवाई के दौरान अभियोजन गवाहों की जिरह, अभियुक्त का बचाव, और साक्ष्य प्रस्तुत करने की प्रक्रिया को कानून द्वारा व्यवस्थित किया गया है। यह प्रक्रिया भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) के तहत संचालित होती है। इसका उद्देश्य निष्पक्ष न्याय सुनिश्चित करना है।
1. अभियोजन गवाहों की जिरह (Cross-Examination of Prosecution Witnesses)
अभियोजन पक्ष (Prosecution) के गवाहों की गवाही के बाद, अभियुक्त का वकील (Defense Counsel) गवाहों की जिरह करता है। इसका उद्देश्य गवाहों के बयानों की सत्यता और सटीकता की जांच करना है।
- उद्देश्य:
- गवाह की विश्वसनीयता पर प्रश्न उठाना।
- अभियोजन के दावों में विरोधाभास उत्पन्न करना।
- बचाव पक्ष के दृष्टिकोण को मजबूत करना।
- प्रक्रिया:
- गवाह से जिरह के दौरान पूछे गए प्रश्न तथ्यों और विधिक मुद्दों पर केंद्रित होते हैं।
- अदालत इस बात पर ध्यान देती है कि जिरह अनुचित, अपमानजनक, या कानून के विरुद्ध न हो।
2. अभियुक्त का बचाव (Defense of the Accused)
अभियोजन पक्ष के मामले को कमजोर करने और स्वयं को निर्दोष साबित करने के लिए अभियुक्त अपना बचाव प्रस्तुत करता है।
- बचाव की विधियाँ:
- अभियोजन साक्ष्यों का खंडन।
- नए साक्ष्य और गवाह प्रस्तुत करना।
- अभियोजन के गवाहों में विरोधाभास उजागर करना।
- अधिकार:
- CrPC की धारा 233 के तहत अभियुक्त को गवाह प्रस्तुत करने और अपने पक्ष में साक्ष्य देने का अधिकार है।
3. साक्ष्य प्रस्तुत करना (Presentation of Evidence)
अभियुक्त के बचाव में साक्ष्य प्रस्तुत किए जाते हैं।
- साक्ष्य के प्रकार:
- दस्तावेजी साक्ष्य (Documentary Evidence)
- मौखिक साक्ष्य (Oral Evidence)
- भौतिक साक्ष्य (Physical Evidence)
- प्रक्रिया:
- साक्ष्य को अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है।
- अभियोजन पक्ष इन साक्ष्यों की सत्यता परखने के लिए जिरह कर सकता है।
4. निष्कर्ष और निर्णय (Conclusion and Judgement)
सभी साक्ष्यों और गवाहों की सुनवाई के बाद, न्यायाधीश मामले का निष्कर्ष निकालते हैं।
- यदि अभियोजन पक्ष संदेह से परे आरोप साबित कर देता है, तो अभियुक्त दोषी ठहराया जाता है।
- यदि बचाव पक्ष संदेह उत्पन्न करने में सफल होता है, तो अभियुक्त बरी किया जा सकता है।
यह प्रक्रिया न्यायिक प्रणाली की पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करती है।